अयोध्या विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजे जाने पर सुप्रीम कोर्ट में निर्णय आज

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजा जाएगा या नहीं? अगर इस मामले को मध्यस्थता के लिए भेजा जाएगा तो इसके लिए मध्यस्थकारों की नियुक्त किया जाएगा। विभिन्न पक्षकारों की ओर से मध्यस्थकारों के लिए नाम भी सुझाए गए हैं। विज्ञापन

चीफ जस्टिस रंजन गोगई, न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की संविधान पीठ शुक्रवार को यह तय करेगी कि इस मसले का हल आपसी समझौते से निकाला जाना चाहिए या नहीं? 

निर्मोही अखाड़े को छोड़ लगभग सभी हिन्दू पक्षकार और उत्तर प्रदेश सरकार इस मामले में मध्यस्थता के खिलाफ हैं। रामलला विराजमान का कहना है कि यह मामला राम जन्मभूमि से संबंधित है लिहाजा आस्था और विश्वास के साथ समझौता नहीं किया जा सकता। रामलला का कहना है कि अगर विचार किया ही जाना है तो इस पर विचार किया जाना चाहिए कि मस्जिद का वैकल्पिक स्थान क्या हो। उसका कहना है कि राम जन्मभूमि पर मध्यस्थता को लिए कोई तैयार नहीं होगा। 

वहीं निमोही अखाड़ा और मुस्लिम पक्षकार का कहना है कि वह  इस मामले में मध्यस्थता के लिए तैयार है। अब देखने वाली बात होगी कि पांच सदस्यीय संविधान पीठ इस मसले पर क्या फैसला लेती है। 

सुप्रीम कोर्ट ने विवादास्पद 2.77 एकड़ भूमि तीन पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर-बराबर बांटने के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 14 अपील पर सुनवाई के दौरान मध्यस्थता के माध्यम से विवाद सुलझाने की संभावना तलाशने का सुझाव दिया था।

निर्मोही अखाड़ा जैसे हिंदू संगठनों ने सेवानिवृत्त न्यायाधीशों – न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ, न्यायमूर्ति ए के पटनायक और न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी के नाम मध्यस्थ के तौर पर सुझाए जबकि स्वामी चक्रपाणी धड़े के हिंदू महासभा ने पूर्व प्रधान न्यायाधीशों – न्यायमूर्ति जे एस खेहर और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) ए के पटनायक का नाम प्रस्तावित किया। 

न्यायालय ने बुधवार को कहा था कि वह अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को मध्यस्थता के लिये भेजा जाए या नहीं इस पर आदेश देगा। साथ ही इस बात को रेखांकित किया कि मुगल शासक बाबर ने जो किया उसपर उसका कोई नियंत्रण नहीं और उसका सरोकार सिर्फ मौजूदा स्थिति को सुलझाने से है। 

शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसका मानना है कि मामला मूल रूप से तकरीबन 1,500 वर्ग फुट भूमि भर से संबंधित नहीं है बल्कि धार्मिक भावनाओं से जुड़ा हुआ है। 

उप्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि न्यायालय को यह मामला उसी स्थिति में मध्यस्थता के लिये भेजना चाहिए जब इसके समाधान की कोई संभावना हो। उन्होंने कहा कि इस विवाद के स्वरूप को देखते हुये मध्यस्थता का मार्ग चुनना उचित नहीं होगा।

इससे पहले, फरवरी महीने में शीर्ष अदालत ने सभी पक्षकारों को दशकों पुराने इस विवाद को मैत्रीपूर्ण तरीके से मध्यस्थता के जरिये निपटाने की संभावना तलाशने का सुझाव दिया था। न्यायालय ने कहा था कि इससे ‘‘संबंधों को बेहतर’’बनाने में मदद मिल सकती है।

शीर्ष अदालत में अयोध्या प्रकरण में चार दीवानी मुकदमों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ 14 अपील लंबित हैं। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि तीनों पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर बांट दी जाये।

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